सर्व की भलाई के लिए त्याग करना

प्राचीनकाल से ही हमारे ऋषि-मुनियों और साधु-संतों ने अपने जीवन को सर्व के कल्याणार्थ अर्पण किया है। महात्मा गॉंधी, मदर टेरेसा, विवेकानंद जैसे महान आत्माओं ने भी समय-समय पर अपनी शिक्षा और आदर्श जीवन से मनुष्यात्माओं को प्रेम, अहिंसा और शान्ति का पाठ पढ़ाया। उन्होंने अपनी त्याग, तपस्या और सेवाभावना से पूरे विश्व को प्रेम, एकता और भाईचारे के सूत्र में पिराने की कोशिश की। कहा जाता है, ‘त्याग से भाग्य बनता है।’ जहॉं त्याग की भावना होगी, वहॉं प्रेम का जन्म होता है। त्याग से नफरत, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा जैसे अवगुण समाप्त हो जाते हैं। माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश करते समय अपनी खुशियों का त्याग कर उनकी हर इच्छाओं को पूर्ण करते हैं अर्थात् प्रेम जितना अधिक गहरा होता है, त्याग की भावना भी उतनी प्रबल होती है। यह विश्व एक परिवार है और हमें भी पूरे विश्व की भलाई के लिए अपना योगदान देना चाहिए। सर्व मनुष्यात्माओं की भलाई के लिए शुभभावना रखना भी एक सत्कर्म है।