Home News National News दिल्ली तालकटोरा स्टेडियम में ’’सुखमय भविष्य के लिए महत्वपूर्ण रहस्योद्घाटन’’ कार्यक्रम

दिल्ली तालकटोरा स्टेडियम में ’’सुखमय भविष्य के लिए महत्वपूर्ण रहस्योद्घाटन’’ कार्यक्रम

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ओमशान्ति के अर्थ में समा कर शान्ति की अनुभूति करने वाले ही बनेगे देवी-देवता’’- दादी हृदयमोहिनी
 
नई दिल्ली, 25 जुलाईः प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा कल शाम स्थानीय तालकटोरा स्टेडियम में ’’सुखमय भविष्य के लिए महत्वपूर्ण रहस्योद्घाटन’’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें निकट भविष्य में विश्व के महापरिवर्तन के पश्चात स्वर्णिम भारत किसके लिए आयेगा और कौन बनेगा वहां देवी-देवता का रहस्योद्घाटन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षा ब्रह्माकुमारी संस्था की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका दादी हृदयमोहिनी जी ने अपने आर्शिवचन में कहा कि ओमशान्ति कहने से ही मन शान्त हो जाता है। ओमशान्ति के अर्थ अर्थात इस शरीर को चलाने वाली शक्ति मैं आत्मा हँू और आत्मा का स्वरूप शान्ति है को समझकर इसमें समा जाने से ही जीवन में शान्ति की अनुभूति होगी और जो इस अनुभूति को प्रतिदिन जीवन में प्रत्येक कर्म में अनुभव करेगा वही बनेगा आने वाली स्वर्णिम दुनिया का देवी-देवता।
ब्रह्माकुमारी संस्था के मुख्य प्रवक्ता ब्र0कु0 बृजमोहन जी ने वर्तमान समय को विश्व के महापरिवर्तन का समय बताते हुए कहा कि दुनिया की हर चीज पहले शुरू होती है अथवा नई होती है फिर धीरे धीरे पुरानी होती है और हर चीज की पुराना होने की एक सीमा होती है जिसके पश्चात उसका परिवर्तन होना निश्चित है। उन्होंने कहा जो चीज सदा रहती है वह च्रक के रूप में होती है और उसके दो बिन्दु होते है आपस में संगम के चाहे वह दिन-रात हो, सप्ताह हो, वर्ष हो। इसी प्रकार इस बेहद के नाटक का चक्र है जो नया होने पर सतयुग से लेकर पुराना होकर कलयुग के अन्त पर पहुँच गया है। और वह बिन्दु आ गया है जब पुराने कलयुग का अन्त हो फिर से नये सतयुग की शुरूआत होगी जिसे ही महापरिवर्तन कहा जाता है।
उन्होंने आगे बताया कि बाकी युगों के परिवर्तन में चाहे वह सतयुग से त्रेतायुग हो या त्रेतायुग से द्वापरयुग हो या द्वापरयुग से कलयुग हो नये युग में आने वाले के साथ पुराने युग के भी लोग होते है जिससे आबादी बढ़ती जाती है। परन्तु इस महापरिवर्तन में अर्थात कलयुग से सतयुग के परिवर्तन में केवल वे लोग ही चल सकेगें जो परमात्मा को पहचान कर उससे सम्बन्ध जोड़ेगे क्योकि परमात्मा स्वर्ग का रचयिता है।
उन्होनें कलियुग और सतयुग मंे अन्तर स्पष्ट करते हुए बताया कि कलयुग में किसी भी व्यक्ति के साथ कभी भी  कुछ भी हो सकता है जबकि सतयुग में हर चीज ठीक समय पर ठीक स्थान पर मर्यादा से होती है।