जैविक और यौगिक खेती विषय पर दिल्ली विज्ञान भवन में किसान सेमिनार
जैविक और यौगिक खेती विषय पर विज्ञान भवन में एक दिवसीय किसान सेमिनार हुआ
’’कृषि के विकास हेतू भारत की पारम्परिक खेती को पुनः अपनाना जरूरी’’- राधामोहन सिंह
नई दिल्ली, 07 अक्टूूबरः ’’कम लागत के साथ कृषि की उत्पादकता और पौष्टिकता बढ़ाने के लिए अब समय है जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, गौ आधारित खेती जैसी परम्परागत कृषि के साथ मानसिक सूक्ष्म उर्जा के प्रयोग का, जिससे ही हमारी खेती परम्परागत सजीव खेती या यौगिक खेती बनेगी’’।
यह विचार केन्द्रीय मंत्री, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय राधामोहन सिंह ने विज्ञान भवन में आज कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय एवं ब्रह्माकुमारीज़ संस्था के ग्राम विकास प्रभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ’’पारम्परिक सजीव कृषि के द्वारा किसान कल्याण सुनिश्चितीकरण ’’ एक दिवसीय सेमिनार में व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि मिट्टी एक जमीन का टुकड़ा नहीं बल्कि हमारी धरती माता है, जिसे असन्तुलित रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग ने बीमार एवं विषैला बना दिया है। इसके लिए हमें ब्रह्माकुमारी संस्था द्वारा जो सजीव यौगिक खेती तकनीक जिसमें खेती और भूमि पर सकारात्मक विचारों के प्रभाव से उत्पादकता बढ़ाने के साथ साथ किसानों के चरित्र, स्वास्थ्य, मनोबल एवं जीवन भी समृद्ध हो रहा है, इसे अधिक से अधिक आज कृषि के क्षेत्र में अपनाने की आवश्यकता है।
सेमीनार के आयोजक कृषि एवं किसान कल्याण मन्त्रालय के केन्द्रीय राज्य मंत्री सुदर्शन भगत ने इस अवसर पर किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारे सारे त्यौहार कृषि जीवन से ही जुड़े है अनेक स्थानों पर कृषि कार्य का प्रारम्भ भी भूमि पूजन एवं धार्मिक अनुष्ठानों से होता है, भारत की इस परम्परागत खेती से भूमि भी उपजाऊ रहती थी, इसलिए हमें अब इस धार्मिक विचारों के प्रभाव को पुनः खेती पर अपनाना होगा।
सेमीनार के सहआयोजक ब्रह्माकुमारीज़ के संयुक्त सेक्रेटरी जनरल ब्र0कु0 बृजमोहन ने परम्परागत सजीव खेती को स्पष्ट करते हुए बताया कि बाह़य प्र्रकृति हमारी मानवीय आन्तरिक प्रकृति पर आधारित है, इसलिए हमें परमात्मा से योग लगाकर स्वयं को शक्तिशाली बनाते हुए धरती, बीजों और खेती के प्रति संवेदनशील होकर सकारात्मक विचार देने होगे, यही वास्तव मे पारम्परिक सजीव अथवा यौगिक खेती है, जिससे प्रकृति मानव से सजीव की तरह जुड़ जाती है और अधिक फलती फूलती है।
इस अवसर पर पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के एग्रोनोमी की प्रोफेसर डॉ. सुनीता पाण्डेय ने कहा कि हमने प्रयोग में पाया कि सकारात्मक विचारों से फसल में पोषित एंजाईम ज्यादा उपजे और धरती के सूक्ष्म जीवों की संख्या में भी वृद्धि हुई, इसके पीछे विज्ञान यह है कि प्रकृति हमारे मन के विचारों का पढ़ती है और उसी अनुसार प्रतिक्रिया देती है। जीव को सजीव बनाने की विधि है पारम्परिक सजीव खेती जिसे अब फिर से अपनाने का समय आ गया है।
ब्रह्माकुमारी की ग्राम विकास प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बी.के. सरला ने किसानो को बताया कि किस प्रकार पहले जिन फल सब्जियों से स्वास्थ्य अच्छा होता था अब अधिक कीटनाशकों एवं रसायनिक खादों के प्रयोग से नुकसान हो रहा है, गुणवत्ता कम हो रही है एवं बीमारियां पैदा हो रही हैं। इसके लिए हमें जैविक खेती के साथ साथ प्रकृति के प्रति शुभ एवं संवेदनशील संकल्पों का प्रयोग कर कृषि तथा इसकी उपज को सशक्त बनाना होगा।
उद्घाटन सत्र के अलावा ओर तीन खुले सत्रों में भारत के विभिन्न राज्यों से आये कृषि सम्बन्धित सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थानों के उच्च पदाधिकारियों ने भी अपने विचार रखें तथा समापन सत्र को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के केन्द्रीय राज्य मंत्री श्री पुरूषोत्तम रूपाला ने सम्बोधित किया। जैविक, यौगिक एवं पारम्परिक कृषि से लाभ तथा रसायनिक खेती से नुकसान के बारे में विभिन्न विडियो शॉ के द्वारा सेमिनार में उपस्थित समग्र भारत से आये हुए किसान एवं कृषि से जुड़े वर्ग को अवगत कराया गया।