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2-Day National Convention on Bhagvad Gita Concludes – ​दो दिवसीय भगवद गीता महासम्मेलन संपन्न

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दो दिवसीय भगवद गीता महासम्मेलन संपन्न

गीता का युद्ध सांकेतिक एवं अहिंसक था- बीके बृजमोहन

आत्म ज्ञान में स्थित होने से प्राप्त होगी परमशक्ति – गौरीशंकर

नई दिल्ली, 28 जुलाई। प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा भगवद गीता का नया अभिप्राय’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय भगवद गीता महासम्मेलन का आज दिल्ली के सीरी फोर्ट सभागार में समापन हुआ।

इस अवसर पर संस्था के अतिरिक्त महासचिव एवं महासम्मेलन के आयोजक राजयोगी बीके बृजमोहन ने कहा कि गीता में वर्णित युद्ध सांकेतिक एवं अहिंसक था। असल युद्ध मानव के भीतर चल रहा है, विकार एवं कमजोरियों के विरुद्ध। निराकार ज्ञान दाता परमात्मा शिव है। परमात्मा ने ही ज्ञान गंगा बहायी। असल में गीता में कर्मों की फिलॉसफी बताई गई है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि कैसे योग के माध्यम से संस्कारों का परिवर्तन हो सकता है। इसके अलावा, गीता ने हमें पांच विकारों से युद्ध करना सिखाया है।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुरेंद्र मोहन मिश्रा ने इस अवसर पर कहा कि अहिंसा के बिना सत्य स्थापित नहीं हो सकता। बिना सत्य भारत की कल्पना नहीं हो सकती। गीता में वर्णित युद्ध एक सांकेतिक युद्ध था। अहिंसक था, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी सराहा था। आज जिस तरह से राष्ट्र का मूल्य बोध चरमरा रहा है। काम, क्रोध, लोभ के कारण राष्ट्रीय जीवन में पतन आया है। आज आवश्यकता काम शत्रु से युद्ध करने की है।

कर्नाटक के हुबली स्थित ब्रह्मा कुमारीज केंद्र के निदेशक एवं गीता विशेषज्ञ , राजऋषि बीके.बसवराज ने कहा कि गीता में वर्णित युद्ध मानस युद्ध था। उन्होंने कहा कि गीता की व्याख्या चार बिंदुओं से की जाती है, पौराणिक, ऐतिहासिक, तार्किक एवं आध्यात्मिक।

श्रीनगर के गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रो. योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने कहा कि गीता प्रतीकात्मक है। इसके आठवें अध्याय में भगवानुवाच है कि मैं ‘ओम’ हूं। यह युद्ध भ्रांति से शांति तक पहुंचने का है। विकृति आती है, तो दुर्योधन बन जाते हैं। भ्रांति से क्रांति आती है और क्रांति से शांति। विश्व को सत की तरफ जाना है, तो शांति लानी होगी। दुर्योधन को फिर से सुर्योधन बनना होगा।

नेपाल के अमृतानुभव संघ ट्रस्ट के ब्रह्म ऋषि गौरीशंकराचार्य महाराज ने कहा कि गीता को लेकर कई तरह के विरोधाभास हैं। संपूर्ण शास्त्रों का सार परोपकार है, तो गीता में अंतर्युद्ध की बात की गई है। उन्होंने कहा कि लक्ष्य तक पहुंचने का जो रास्ता है, वह महाभारत है और उसमें आने वाली बाधाओं का समाधान गीता ज्ञान से होता है। गीता में मूल रूप से तीन बातें समायी हैं। मैं कौन, ये जगत क्या है और जगत का नियंता कौन है। मैं आत्मा हूं और जगत के नियंता परमशक्ति, प्रकाशवान, अखिल विश्व के स्वामी परमात्मा हैं। आत्म ज्ञान में स्थित होने से परम शक्ति की प्राप्ति होती है।

गुरुग्राम स्थित ओम शांति रीट्रीट सेंटर की निदेशक बीके आशा ने कहा कि गीता में मातृ शक्ति को महत्व दिया गया है। हम साल में दो बार नवरात्रि मनाते हैं। नदियों के नाम बहनों पर हैं। वे पवित्र पावनी कही जाती हैं। ज्ञान को बांटने का कार्य माताओं पर है। देवियों ने समाज का निर्माण किया है। दैवी संप्रदाय के निर्माण में मातृशक्ति का योगदान भरपूर रहा है।

माउंट आबू से पधारीं गीता विशेषज्ञ राजयोगिनी उषा दीदी ने कहा कि गीता के 18वें अध्याय में उपदेश दिया गया है मनमनाभव का। इंद्रियों को जीतने से ही मन को जीता जा सकता है। मन एक चंचल घोड़े की तरह है। उसकी दिशा उस ओर है, जहां कई तरह के विकार हैं। आध्यात्मिक ज्ञान से ही मन को नई दिशा दे सकते हैं। मन को मारना नहीं, मोड़ना है। ईश्वर की तरफ मन का मुख कर देंगे, तो वह नियंत्रित हो जाएगा। मन को जितना सकारात्मक, श्रेष्ठ, सुंदर बनाएंगे, उतना मनोयुद्ध से लड़ पाएंगे और विजयी बनेंगे। मन को मित्र बनाएं।

इससे पूर्व, शनिवार को इस महासम्मेलन का शुभारंभ संस्था के गुरुग्राम स्थित ओम शांति रीट्रीट सेंटर में हुआ था। जिसमें हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हैदराबाद, कर्नाटक, जबलपुर, ओडिसा, आदि राज्यों से गणमान्य गीता विशेषज्ञ, संत, महात्माओं ने सम्मिलित होकर दो खुले सत्र और चार प्लेनरी सेशन के माध्यम से गीता में वर्णित भारत के पुरातन राजयोग तथा विकारों रूपी शत्रुओं के ऊपर अंतर्युद्ध के बारे में गहराई से विचार विमर्श किया।

Press Release

2-Day National Convention on Bhagvad Gita Concludes

“Yoga a Misnomer”, say Gita Scholars

New Delhi, July 28: Describing physical exercises as yoga misleads people away from the real yoga taught by the Gita, which is remembrance of God, Bhagvad Gita scholars and religious leaders said in a public program organized by the Brahma Kumaris at Sirifort Auditorium here today.

Addressing this public event on last day of a 2-Day National Convention of Saints and Scholars on ‘New Learning from The Bhagavad Gita’, they also said that the God of Gita is incorporeal, not a physical being, and the war mentioned in the holy book is the battle in human minds between good and evil tendencies, not a physical war.

The Gita, which is a treatise on yoga, nowhere mentions physical kriyas and asanas, which have become the most popular form of ‘yoga’ across the world, particularly after the UN declared June 21 as the International Day of Yoga, the scholars said.

“The Gita says that remembrance of God, not physical exercises, remove our sorrow,” said Prof. Prafulla Kumar Mishra, former head of department, Sanskrit, Utkal University, Bhubaneswar.

The panel asked the audience to be discerning and understand the deeper meaning of the metaphors used in the Gita, otherwise the knowledge could become confusing.

“The war mentioned in the Gita is symbolic of the war between good and evil on the battlefield of the mind which goes on within everyone, said BK Basavaraj Rajrushi, Gita research scholar from Hubli.

BK Usha, Rajyoga teacher from Mount Abu, said that Arjuna is time and again asked to win over his mind to emphasise on the skill of mastering the self. “We must steer the mind, not suppress it, is the message of the Gita,” she said.

BK Brij Mohan, Additional Secretary-General of the Brahma Kumaris, said that yoga taught in the Gita was the only means of removing social evils, which are rooted in vices that corrupt the mind and lead to wrong actions.

Speaking on the role of women, BK Asha, Director, Brahma Kumaris’ Om Shanti Retreat Centre (ORC), Gurugram, said it was impossible to transform society without the essential feminine qualities of nurturing, compassion, tolerance and patience.

The event was inaugurated a day before at ORC. Several open sessions and panel discussions, which were part of the programme, attempted to demystify the truths in the Gita so that its knowledge becomes accessible and useful to the people.