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International Women’s Day Seminar on “Be Bold for Change” in Delhi-ORC

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किसी भी समाज का विकास महिलाओं की भागीदारी के बिगर संभव नहीं-शमीना शफीक
नारी अबला नहीं बल्कि श1ित है-मनदीप
आध्यात्मिकता से आती है व्यवहार कुशलता -चक्रधारी दीदी
परिवर्तन के लिए निरन्तर प्रयास जरूरी- आशा दीदी
७ मार्च २०१७, गुरूग्राम

ब्रह्माकुमारीज़ के ओम् शान्ति रिट्रीट सेन्टर द्वारा मंगलवार ७ मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में बी बोल्ड फोर चैन्ज विषय पर एक दिवसीय सेमीनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में समाज के अनेक प्रतिष्ठित क्षेत्रों से जुड़ी हुई महिलाओं ने शिरकत की।

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कार्यक्रम में अपने विचार व्य1त करते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य व पॉवर फाउन्डेशन की अध्यक्ष शमीना शफीक ने कहा कि अगर हम सच में महिलाओं के विकास के लिए कार्य करना चाहते हैं, तो पहले महिलाओं को एक-दूसरे का सहयोग करना बहुत आवश्यक है। आज हम देखते हैं कि समाज में महिलाओं का स्तर काफी बेहतर हुआ है। उन्होंने कहा कि महिलाएं समाज की धुरी हैं, उनके परिवर्तन से ही समाज व देश का विकास संभव है। लेकिन पुरूषों के योगदान के बिना ये संभव नहीं हो सकता।

करोल बाग की पूर्व काउन्सलर मनदीप ने कहा कि हमें स्वयं को कमजोर नहीं समझना चाहिए, नारी स्वयं में एक श1ित है। उन्होंने कहा कि जब हम दूसरों को आगे बढ़ते देख खुश होते हैं, तब हमारी जीवन में बोल्डनेस आती है।

अखिल भारतीय महिला स6मेलन, गुरूग्राम की अध्यक्ष आशा शर्मा ने कहा कि महिलाएं आज तक सिर्फ सुनती आई हैं, लेकिन अभी बदलाव का समय है। उन्होंने कहा कि बोल्ड होने का तात्पर्य है, की चीजें जैसी हैं उन्हें वैसा स्वीकार करना।

सिल्वर लाइनिंग फाउन्डेशन की अध्यक्ष प्रीति मोंगा ने कहा कि मैं ५० वर्षों से नेत्रहीन हँू। मेरे जीवन में कई ऐसे पल आए जब मैंने जीवन को समाप्त करने की ठान ली थी। लेकिन मेरे अन्दर से एक आवाज आती थी कि नहीं एक अवसर और लो। मैंने अन्दर की आवाज को सुनकर बोल्ड निर्णय लिया कि मुझे जीवन में कुछ विशेष करना है। आज मैं उन लोगों के लिए कार्य कर रही हँू जो मेरे जैसे हैं। मेरा यही लक्ष्य है कि मैं स्वयं के परिवर्तन से दूसरों को प्रेरित करूँ।

कार्यक्रम में ब्रह्माकुमारीज़ के महिला प्रभाग की अध्यक्ष राजयोगिनी चक्रधारी दीदी ने अपने संबोधन में कहा कि आज हम महिलाओं के विकास के लिए बहुत कुछ कार्य कर रहे हैं। लेकिन उससे भी अधिक आवश्यकता उन्हें संस्कारवान बनाने की है। उन्होंने कहा कि कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें हम सिखा नहीं सकते लेकिन हमारे व्यवहारिक जीवन से लोग स्वयं ही सीखते हैं। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता हमें व्यवहार कुशलता के साथ-साथ धैर्यवान भी बनाती है।

इस अवसर पर विशेष रूप ओआरसी की निदेशिका राजयोगिनी आशा दीदी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि हमें परिस्थितियों से कभी घबराना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज में जब भी कोई व्य1ित अच्छा कार्य करता है तो चुनौतियां तो आती ही हैं। हमें उन चुनौतियों का सामना करना है। उन्होंने कहा कि कोई भी परिवर्तन अचानक नहीं आता। हम जिस परिवर्तन को लाना चाहते हैं उसके लिए निरन्तर प्रयास जरूरी है।