Abu Road- Shantivan – Loving Tribute to Dadi Prakashmani on her 11th Memorial Day – दादी प्रकाशमणि का 11वां पुष्पांजली कार्यक्रम
सकारात्मक ऊर्जा का प्रकाशपुंज थी दादी प्रकाशमणि
– संयुक्त मुख्य प्रशासिका दादी रतनमोहिनी के उद्गार
– दादी प्रकाशमणि का 11वां पुष्पांजली कार्यक्रम
– देशभर से पहुंचे 20 हजार से अधिक लोगों ने दी श्रद्धांजली
– सुबह 8 बजे से लेकर रात तक लगा रहा लोगों का तांता
– दादी की स्मृति में बने प्रकाश स्तंभ को फूलों से सजाया
ब्रह्माकुमारी संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका दादी प्रकाशमणि के 11वें पुण्य स्मृति दिवस के उपलक्ष्य में शनिवार को पुष्पांजली कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें देशभर से पहुंचे 20 हजार से अधिक लोगों ने दादी की स्मृति में बने प्रकाश स्तंभ पर पहुंचकर श्रद्धांजली दी। वहीं अलसुबह 3 बजे से ब्रह्ममुहूर्त में दादी की याद में सभी ने विशेष योग किया। इसके माध्यम से पूरे विश्व बंधुत्व, विश्व एकता और सद्भाव की कामना करते हुए योग के शुभ प्रकम्पन फैलाए। वहीं प्रकाश स्तंभ को विशेष रूप से कोलकाता से आए कलाकारों ने सजाया।
कार्यक्रम में मुख्य प्रशासिका 103 वर्षीय दादी जानकी ने कहा कि दादी प्रकाशमणि सकारात्मक ऊर्जा का साक्षात प्रकाशपुंज थीं। योग का ही कमाल है जो उनके एक-एक संकल्प साकार हो जाते थे। उन्होंने आध्यात्मिक ऊर्जा और परमात्म शक्ति से स्वयं को इतना सशक्त बना लिया था कि उनके सानिध्य में आने वाले हर कोई एक अद्भुत शक्ति और ऊर्जा का अनुभव करता था।
संयुक्त मुख्य प्रशासिका दादी रतनमोहिनी ने कहा कि दादी ममता और स्नेह की साक्षात मूरत थीं। आपकी ममतामयी पालना का ही कमाल है जो आपके सानिध्य में 20 हजार से अधिक बहनों ने खुद को समाजसेवा और विश्व कल्याण के कार्य में अर्पण कर दिया। महासचिव बीके निर्वैर भाई ने भी दादी के साथ के अपने अनुभव सांझा किए।
जनरल मैनेजर बीके मुन्नी बहन ने कहा कि मैं खुद को भाग्यशाली समझती हूं जो दादी के अंग-संग 40 साल से अधिक समय तक रहने का मौका मिला। दादी का एक-एक बोल वरदानी बोल था। वह हमेशा कहती थीं जैसा कर्म हम करेंगे, हम देखकर और करेंगे। दादी त्याग-तपस्या की एक प्रतिमूर्ति थीं। इतनी बड़ी संस्था की हैड होने के बाद भी उनको कभी हेडक नहीं होती थी। वह कहती थी कि मैं स्वयं को कभी हेड समझती ही नहीं। हैड समझने से हेडक होती है।
दादी के सानिध्य में वटवृक्ष बनी संस्था
दादी जी के कुशल प्रबंधन, नेतृत्व, त्याग और मेहनत से संस्था प्रगति-पथ पर निरंतर आगे बढ़ती गई और नए-नए कीर्तिमान स्थापित करती गई। वर्ष 1969 में संस्था के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद दादी ने इसकी बागडोर संभाली। दादी के सानिध्य में ही आध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन का संदेश विश्व के 142 देशों में तक पहुंचा और एक नन्हा से पौधे ने वटवृक्ष का रूप ले लिया। विश्वभर में 8 हजार से अधिक सेवाकेंद्र का संचालन शुरू किया गया। जिसके फलस्वरूप प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय को संयुक्त राष्ट्र संघ ने गैर सरकारी संस्था के तौर पर आर्थिक एवं सामाजिक परिषद का परामर्शक सदस्य बनाया जो कि यूनिसेफ से भी सम्बद्ध है। साथ ही सात पीस मैसेंजर अवार्ड से भी संस्था को नवाजा गया।
1922 में हैदराबाद (सिंध) में हुआ था जन्म…
दादी का जन्म 1922 को हैदराबाद (सिंध) में एक बड़े ज्योतिषी के घर हुआ। दादी प्रकाशमणिजी का बचपन का नाम रमा था। 14 वर्ष की आयु में वर्ष 1936 में ब्रह्माकुमारी•ा के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा के संपर्क में आईं और उन्होंने उसी समय यह निर्णय कर लिया कि अब हमारा जीवन सद्गुणों से युक्त ईश्वरीय सेवा के लिए रहेगा। तरुण अवस्था में रमा की लगन, निष्ठा, प्रतिभा और दिव्यता की आभा को देखते हुए ब्रह्मा बाबा ने उनका नाम रमा से बदल प्रकाशमणि रखा। दादी जी लाखों लोगों की रूहानी सेना तैयार कर खुद फरिश्ता बन गई और 25 अगस्त, 2007 को इस दुनिया से विदा हो गई।