Home News National News Mount Abu – Convention of Political Leaders at Gyan Sarovar Academy

Mount Abu – Convention of Political Leaders at Gyan Sarovar Academy

0 1824
माउंट आबू ( ज्ञान सरोवर ), १० अगस्त २०१९। आज ज्ञान सरोवर स्थित हार्मनी हॉल में ब्रह्माकुमारीज एवं आर ई आर एफ की भगिनी संस्था, “राजनीतिज्ञ सेवा प्रभाग” के संयुक्त तत्वावधान में एक अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का विषय था’ विकट समय के लिए आध्यात्मिक सशक्तिकरण’. इस सम्मेलन में देश तथा नेपाल के सैकड़ों राजनीतिक प्रतिनिधिओं ने भाग लिया। दीप प्रज्वलन के द्वारा सम्मेलन का उद्घाटन सम्पन्न हुआ।
 
असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने मुख्य अतिथि के रूप में अपना विचार प्रस्तुत किया। आपने बताया की आप काफी पहले से इस संस्था से साथ जुड़े हुए हैं। ब्रह्मा कुमारीस की निःस्वार्थ सेवाओं से आप काफी प्रभावित हैं। आपने कहा की इस सम्मेलन में पधारे हुए सभी राजनेता यहां की शिक्षाओं से काफी लाभ प्राप्त करेंगे। सभी धर्म के लोग इस शिक्षा से प्रकाशित हुए हैं। यह संस्था महान कार्य कर रही है।
 
ज्ञान सरोवर की निदेशक तथा एशिया पसिफ़िक ब्रह्माकुमारीज़ की प्रभारी राजयोगिनी दीदी निर्मला जी ने आज के सम्मेलन में अध्यक्षीय प्रवचन प्रस्तुत किया। आपने कहा कि आज हरेक व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति की जरूरत है। पारिवारिक सम्बन्ध , आर्थिक दशा , राजनैतिक स्थति सभी आज गड़बड़ होते ही रहते हैं। और उसपर राज नेताओं पर काफी बड़ी जिम्मेवारी है। उनको काफी बल चाहिए दायित्व के निर्वहन के लिए। अतः धार्मिकता व आध्यात्मिकता का जीवन में समावेश अनिवार्य है। गाँधी ने भी तभी सफलता प्राप्त की थी। आप भाग्यशाली हैं की इस परमात्म भूमि पर पधारे हैं। यहाँ की शिक्षाओं को अपना कर आप हर क्षेत्र में सफलता पाएंगे।
 
राजनीतिज्ञ सेवा प्रभाग के अध्यक्ष राजयोगी बृजमोहन भाई ने आज का मुख्य प्रवचन दिया। आपने कहा की यहां पधारे हुए राजनीतज्ञ करोड़ों लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आपकी आवाज दूर दूर तक सुनी जाती है. कभी भारत वर्ष में श्री लक्ष्मी श्री नारायण का राज्य था। ये सम्पन्नता की प्रतिमूर्ति थे। प्रजा भी उस समय सम्पन्न थी। हमारे देवी देवता तब धार्मिक सत्ता भी थे। प्रकृति भी उनकी दासी थी। आज का हाल पूरी तरह अलग है। आज के लोगों का, राजनेताओ का हर प्रकार का सशक्तिकरण तो हुआ है मगर उनका आध्यात्मिक सशक्तिकरण नहीं हो पाया है.
 
आज दुनिया इस हद तक असहाय हो गयी है की कहती है, में करना तो चाहता हूँ कल्याण लोगों का मगर कर नहीं पाता। यह काफी दुखद स्थिति है। अब प्रजा तंत्र का समय आ गया है। उम्मीद की जाती है की एक दो लोग तो बुरे हो सकते हैं मगर लोगों का एक समूह बुरा नहीं होगा। मगर यह प्रयोग भी विफल हो गया है। दरअसल आज मनुष्य अपना ही शत्रु बना हुआ है। वह ५ विकारों का गुलाम हो गया है। जब वह अपनी इस ग़ुलामी से मुक्त होगा तब सुधार होगा। इसके लिए उनको आध्यात्मिक मार्ग को अपनाना होगा। खुद को आत्मा मानने से श्रेष्ठ मूल्य जीवन में आ जाते हैं और हम शक्तिशाली बन जाते हैं.
 
डॉक्टर शोभाकर पराजुली, पूर्व सांसद, नेपाल ने भी अपने विचार प्रकट किये। आपने कहा की शायद पूर्व जन्म में मैंने कोई शुभ कर्म किया होगा – तभी इस सम्मेलन में उपस्थित होने का भाग्य मुझे मिला है। इस पवित्र भूमि पर आने के बाद जो अनुभूति हो रही है वह प्रकट नहीं कर सकता। जुबान गूंगी हो गयी है। दिल प्रेम से भरा हुआ है। श्रद्धा से भरा हुआ है। मैं अपनी और सम्पूर्ण नेपाल वासिओं की ओर से सम्मेलन को अपनी शुभ कामनाएं दे रहा हूँ।
डॉक्टर सीता सिन्हा, बिहार सरकार में पूर्व मंत्री और पटना विश्व विद्यालय में प्रोफेसर ने कहा कि यहाँ आते ही यहां के माहौल का प्रभाव हमें उत्साहित कर देता है। एक अनूठी ऊर्जा भर जाती है जीवन में। यहां सही विषय पर चर्चा हो रही है। राजनीतिज्ञों के लिए और सभी के लिए जीवन को आध्यात्मिकता से संचालित करना अनिवार्य है। तभी वह सही दिशा में जा पायेगा। इसके बिना जीवन भौतिकता की जकड में फँस कर बर्बाद होता रहेगा। राजयोग से जीवन को आध्यत्मिकता से संवारा जा सकता है।
 
मनहर बालजीभाई जाला सफाई कर्मचारी संघ, भारत सरकार के अध्यक्ष ने कहा कि आज का दौर एक अजीब चिंतन का विषय है। क्या कहा जाए ? अगर कहूँ की यह स्थान एक आध्यात्मिक स्वर्ग है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। सम्मेलन का विषय महत्वपूर्ण है। भारत कभी विश्व गुरु था। आज वैसा नहीं है। आज भी अगर हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता का समावेश करेंगे तो फिर से देश विश्व गुरु बन जाएगा और दुनिया को दिशा दिखलायेगा।
 
राजनीतिज्ञ सेवा प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजक राजयोगिनी लक्ष्मी दीदी ने भी शुभकामनायें दीं. आपने बताया की जो अपने जीवन का ध्यान रखते हैं वही दूसरों के जीवन का भी ख़याल रख सकते हैं। आत्मा के सातों गुणों के अलावा सत्यता भी जीवन में चाहिए। प्रारम्भ में मनुष्य मात्र उत्तम प्रकृति के ही थे। धीरे धीरे पतन हुआ है। आज फिर से अपने जीवन में आध्यात्मिकता को अपना कर श्रेष्ठता धारण कर सकते हैं।