SpARC Wing Conference at Gyan Sarovar, Mount Abu
साइलेंस की शक्ति विज्ञान और आध्यात्म को करीब लाएगी : पद्म भूषण डॉक्टर वी के सारस्वत
आबू पर्वत ( ज्ञान सरोवर ) ४ अगस्त २०१८.
आज ज्ञान सरोवर स्थित हार्मनी हॉल में ब्रह्माकुमारीज एवं आर ई आर एफ की भगिनी संस्था, ” स्पार्क प्रभाग ” के संयुक्त तत्वावधान में एक अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मलेन का मुख्य विषय था – “रीजूविनेट , इंनोवेट , इंटीग्रेट“ . इस सम्मलेन में भारत वर्ष के विभिन्न प्रदेशों से बड़ी संख्या में प्रतिनिधिओं ने भाग लिया। दीप प्रज्वलित करके सम्मेलन का उदघाटन सम्पन्न हुआ।
नीति आयोग के सदस्य और जे एन यू के चांसलर पद्म भूषण डॉक्टर वी के सारस्वत ने आज मुख्य अतिथि के रूप में अपनी बातें रखीं। आपने कहा कि हम अपने फैसलों को किस प्रकार से आध्यात्मिकता के पुट से युक्त करें – हमको इसपर विचार करना है। विज्ञान भौतिक जगत के सत्य पर विचार करता है जब की आध्यात्मिकता हमारे मनोभावों – और विचारों आदि पर शोध करता है। प्रश्न है की विज्ञान और आध्यात्म को कैसे युक्त किया जाए ? साइलेंस की शक्ति इसमें कारगर हो सकती है। आध्यात्मिकता हमारी चेतना से सम्बद्ध है – हमरे जागरण से। जबकि विज्ञान पदार्थों पर शोध करता है। शांति की शक्ति से हम सर्वोच्च सत्ता से जुड़ सकते हैं और चेतना के शिखर को समझ सकते हैं। तब हमारा जीवन मूल्यवान और उपयोगी बन जाता है।
राजयोगिनी आशा दीदी , ओ आर सी की निदेशक ने कहा की विज्ञान और आध्यात्म एक दूसरे के पूरक हैं – एक दूसरे से दूर नहीं हैं – विरोधाभासी नहीं हैं । आपने बताया की हम श्री लक्ष्मी, श्री नारायण की पूजा इसलिए करते हैं क्योंकि ये लोग सत्ता हैं ,मूल्यों के। मूल्यवान लोग हैं। भौतिकता से पूरी तरह युक्त हैं मगर पूज्य हैं। आज की दुनिया में आप सर्वाधिक अमीर व्यक्ति की भी पूजा नहीं करते। क्योंकि वे इस लायक नहीं हैं। धन है मगर वहाँ मूल्य नहीं है। मूल्यवान होने के लिए यह समझना जरूरी है की हम सभी अपने शरीर से अलग आत्मायें हैं। आत्मानुभूति के बाद ही जीवन मूल्यवान बनता है और पूज्य भी। राजयोग उसमें हमारी मदद करता है। इसके अभ्यास से हम पूज्य बन जाते हैं। शरीर पर हमारा वश है मगर मन पर नहीं है। मन हमारे वश में नहीं है। आत्मा को समझने के बाद वह हमारे वश में आ जायेगा। कहा गया है – मन को जीते जगत जीत। जगत जीत बनना बड़ी बात है मगर राजयोगिओं के लिए आसान है। राजयोगी बनने के लिए आपका स्वागत है।
रजयोगिनी अम्बिका दीदी, स्पार्क विंग की अध्यक्षा ने आज अपना सम्बोधन इस प्रकार प्रस्तुत किया। आपने कहा की आध्यात्मिक प्रज्ञा आत्मिक सत्य को समझना है। क्या दुनिया में सभी लोग सदैव उत्फुल्ल रह सकते हैं ? परमात्मा का ज्ञान जो उन्होंने प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के माध्यम से प्रदान किया है – उसको जीवन में आत्म सात करने से वैसी स्थिति प्राप्त की जा सकती है। दैनिक जीवन में आत्मिकता की अनुभूति से हमारा जीवन पूरी तरह संतुलित और सफल बन जाता है। हम अपने समाज को एक मूल्यवान समाज बनावें। यह आज की अनिवार्यता है।
ब्रह्माकुमारीज़ के कार्यकारी सचिव राजयोगी मृत्युंजय ने अपना आशीर्वचन दिया। आपने सम्मेलन में पधारे हुए महानुभावों का फिर से स्वागत किया। आपने बताया की हम विश्वविद्यालयों में और कॉलेजेस में थॉट लाइब्रेरी की स्थापना कर रहे हैं। वहाँ लोग सकारात्मक विचारों को उत्पन्न करेंगे और उसकी विधि भी जानेंगे। इससे लोगों के संस्कार सुधरेंगे और जीवन दिव्य बनेगा।
डी आर डी ओ से पधारे डॉ सुशील चंद्र ने आज के अवसर पर कहा की स्पार्क आध्यात्मिकता और शोध पर आधारित है। यह संस्था आध्यात्मिकता पर और आध्यात्मिकता के लिए शोध करती है। आपने राजयोगियों पर किये गए अनेक शोधों का विवरण दिया और बताया की कैसे विभिन्न परिश्थितियों में भी उन राजयोगिओं ने काफी अच्छी मानसिक स्थिति बरकरार रखी।
प्रो डॉक्टर रोमेश गौतम , वरिष्ठ अधिवक्ता , सर्वोच्च न्यायालय ने आज के अवसर पर अपनी बातें इस रूप में रखीं। आपने कहा कि मैं यहां से काफी कुछ सीख कर जावूंगा। यहां आकर ऐसा लगा की मैं एक असामान्य और अलौकिक स्थान पर पंहुचा हूँ। मैं अपने ऑफिस तक को भूल गया हूँ। ऐसा एक अलग सा प्रभाव इस स्थान का मेरे मन पर पड़ा है। लग रहा है की सब कुछ ठीक ही हो रहा होगा। यहां आकर जो आत्मिक शांति मिलती है उसकी तुलना धन दौलत से नहीं की जा सकती है।
आपने प्राचीन भारतीय ज्ञान के बारे में बताया।
डॉ जयश्री ने कहा की मैं यहाँ सीखने के लिए आयी हूँ। मुझे यहाँ काफी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हो रही है। मैं यहाँ से काफी कुछ सीख कर जाने वाली हूँ। आम तौर पर लोग मानते हैं की विज्ञान से जुड़े लोग नास्तिक होते हैं जो की बिलकुल सही नहीं है। मैं पूरी आस्तिक हूँ। संसार की हर घटना से सर्वोच्च सत्ता की उपस्थिति प्रकट होती रहती है। दुनिया वालों को और कैसा प्रूफ चाहिए उनके होने का ?? जीवन में संतुलन का बड़ा महत्व है। उसके लिए आध्यात्म सहयोगी होगा।
ग्यारह वर्षीय हिमांग, सोशल इन्नोवेटर, ने कार्यक्रम को सम्बोधित किया और अपनी यात्रा के बारे में बताया। कहा की मेरी यात्रा की सफलता में मेरे माता पिता की बड़ी भूमका रही है। मैंने रोबोटिक्स से शुरुआत की और नेशनल चैंपियन बना। मुझे विश्वास ही नहीं हुआ की मेरे साथ कुछ बड़ा घट गया है। और उसके बाद मेरा सफर बढ़ता ही चला गया।